इक गुनह गर हुआ नही होता
ये जहां ही बसा नही होता
नाम उसका ही रख दिया सूरज
घर में जिसके दिया नहीं होता
मैं अजाबों से होके गुजरा हूँनाम उसका ही रख दिया सूरज
घर में जिसके दिया नहीं होता
कैसे कह दूं खुदा नहीं होता
देखने का सही नजरिया रख
चाँद छोटा बड़ा नहीं होता
नाउम्मीदी के पाँव में बेशक
एक भी आबला नहीं होता
दर्द का कुछ इलाज़ कर मौला
अब ये बढ़ कर दवा नहीं होता
रात दिन हों भले बड़े छोटे
जौक़ इनसे जुदा नही होता
इश्क़ अंजाम तक पहुचता गर
कोई आशिक फना नही होता
कैसे आऊँ हुज़ूर में तेरे
क़र्ज़ जब तक अदा नही होता
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