न जाने दिल में बसी ऐसी बेकली क्यूँ है
जो दिल जलाए वही मेरी ज़िंदगी क्यूँ है
'हवा के दम' से ही जिंदा है लौ चिरागों में
हवा को जलते चिराग़ों से दुश्मनी क्यूँ है
ये चाँद खुश था अगर चांदनी की बाहों में
सहर हुई तो जमीं पर दिखी नमी क्यूँ है
मेरे ही अज्म से आबाद शह्र हैं कितने
मेरे नसीब में आबाद मुफलिसी क्यूँ है
मेरा उसूल है, मैं सच के साथ रहता हूँ
मुझे इसी की सजा बारहा मिली क्यूँ है
जो दिल जलाए वही मेरी ज़िंदगी क्यूँ है
'हवा के दम' से ही जिंदा है लौ चिरागों में
हवा को जलते चिराग़ों से दुश्मनी क्यूँ है
'चराग घर का' अंधेरे में बुझ गया शायद
ये आधी रात को उस घर में रोशनी क्यूँ है
ये चाँद खुश था अगर चांदनी की बाहों में
सहर हुई तो जमीं पर दिखी नमी क्यूँ है
मेरे ही अज्म से आबाद शह्र हैं कितने
मेरे नसीब में आबाद मुफलिसी क्यूँ है
मेरा उसूल है, मैं सच के साथ रहता हूँ
मुझे इसी की सजा बारहा मिली क्यूँ है
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