न कहना मुहब्बत का मुश्किल सफ़र है
इसी राह पर एक उनका भी घर है
किसी पर भरोसा नही कर सकेगा
अगर तेरे दिल में अगर या मगर है
अंधेरे को देखे सुने खामुशी को
नही सब में होता ये ऐसा हुनर है
नही अब मुझे डर है इन्सां से कोई
खुदा ही बना जब मेरा मोतबर है
मुक़ाबिल कभी मुफलिसों के न आना
कि उनको नही कुछ भी खोने का डर है
समंदर के हैं दोनों हाँथों में लड्डू
जो सोये तो साहिल उठे तो क़मर है
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