जिन्हें है शौक रौशन आतिशी का
उन्हें चेहरा नहीं दिखता किसी का
बढाए पांव हमने सूए सहरा
मिले शायद वहीं हल तश्नगी का
रहे जिसमे बरस जाने की कुव्वत
बसे घर साथ उसके दामिनी का
दिये की लौ ज़रा सी तेज कर दो
भरम कायम रहेगा रोशनी का
उठाकर आँख भी देखा न उसने
सबब पूछा जो मैंने बेदिली का
यकायक आरिजों की सुर्ख रंगत
नहीं है मस'अला ये दिल्लगी का
अभी उनवान तक सूझा नही है
करूँ क्या तब्सिरा मैं आलमी का
हुए अपने तजाहुल मुफलिसी में
यही है अस्ल चेहरा आदमी का
उन्हें चेहरा नहीं दिखता किसी का
बढाए पांव हमने सूए सहरा
मिले शायद वहीं हल तश्नगी का
रहे जिसमे बरस जाने की कुव्वत
बसे घर साथ उसके दामिनी का
दिये की लौ ज़रा सी तेज कर दो
भरम कायम रहेगा रोशनी का
उठाकर आँख भी देखा न उसने
सबब पूछा जो मैंने बेदिली का
यकायक आरिजों की सुर्ख रंगत
नहीं है मस'अला ये दिल्लगी का
अभी उनवान तक सूझा नही है
करूँ क्या तब्सिरा मैं आलमी का
हुए अपने तजाहुल मुफलिसी में
यही है अस्ल चेहरा आदमी का
बढाए पांव हमने सूए सहरा
ReplyDeleteमिले शायद वहीं हल तश्नगी का
Bahut badiya gazal hai shriman
धन्यवाद आशीष जी.
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