ख़्वाब की ताबीर पर मैं मुस्कराया रात भर
चांदनी में आज मैं जी भर नहाया रात भर
ज़िंदगी दो चार दिन की है इसे हँस कर जियो
मानता वो है नही, मैंने मनाया रात भर
ताक़यामत तो नही रहती है कोई शै मगर
दोस्तों की बेरुखी पर तिलमिलाया रात भर
सुन के नानी की कहानी आज वो रोई बहुत
माँ की मीठी लोरियों ने फिर सुलाया रात भर
आपसी रिश्तों की तल्खी हो गयी नासूर सी
आँसुओं ने दर्द से रिश्ता निभाया रात भर
बेरुखी तेरी सताती ही रही दिन भर मुझे
सब्र को तन्हाइयों ने आजमाया रात भर
जो खिला पाया नही इक फूल अपने बाग में
गुल, गुलिस्तां की ग़ज़ल वो गुनगुनाया रात भर
दूर हो कर मुझसे वो भी सो न पायेगा कभी
बस इसी इक बात ने मुझको जगाया रात भर
bahut khub..
ReplyDeleteधन्यवाद पूनम जी
ReplyDeletebahut sundar bade bhai ... hamesha ki tarah ../
ReplyDeleteधन्यवाद पाण्डेय जी.
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