अगर तुमने कभी उठाया होता
जिम्मेदारियों का बोझ
तो तुम्हे पता होता
कि पसीने में बदबू नहीं होती
अगर तुमने कभी
कचरे से निकाल कर
खाया होता
रोटी का सूखा टुकड़ा
तो तुम्हे पता होता कि
भूख वादों के निवालों से नहीं मिटती
अगर तुमने बहाए होते कभी
बेबसी के आंसू
तो सत्ता के गुरूर में
तुम्हारी गर्दन नहीं अकड़ती
ऐसा भी क्या सत्ता का गुरूर
कि सामान्य शिष्टाचार भी
नहीं रहा याद
ध्यान से देखा नहीं तुमने
कि जब तुम्हारी एक उंगली
कर रही थी इशारा मेरी ओर
तो तीन तुम्हारी तरफ ही थीं
अब तो तुम्हे पता चल चुका होगा
कि जनशक्ति क्या होती है
तुम्हारी एक उंगली को भी
कैसे उसने तुम्हारी ओर ही मोड दिया
समय आ गया है
आत्म मंथन करने का
अस्थाई सत्ता को भूल
सार्वभौम सत्ता को याद करने का
उससे ऊपर नहीं हो तुम
इसे स्वीकार करने का
शेष धर तिवारी
जिम्मेदारियों का बोझ
तो तुम्हे पता होता
कि पसीने में बदबू नहीं होती
अगर तुमने कभी
कचरे से निकाल कर
खाया होता
रोटी का सूखा टुकड़ा
तो तुम्हे पता होता कि
भूख वादों के निवालों से नहीं मिटती
अगर तुमने बहाए होते कभी
बेबसी के आंसू
तो सत्ता के गुरूर में
तुम्हारी गर्दन नहीं अकड़ती
ऐसा भी क्या सत्ता का गुरूर
कि सामान्य शिष्टाचार भी
नहीं रहा याद
ध्यान से देखा नहीं तुमने
कि जब तुम्हारी एक उंगली
कर रही थी इशारा मेरी ओर
तो तीन तुम्हारी तरफ ही थीं
अब तो तुम्हे पता चल चुका होगा
कि जनशक्ति क्या होती है
तुम्हारी एक उंगली को भी
कैसे उसने तुम्हारी ओर ही मोड दिया
समय आ गया है
आत्म मंथन करने का
अस्थाई सत्ता को भूल
सार्वभौम सत्ता को याद करने का
उससे ऊपर नहीं हो तुम
इसे स्वीकार करने का
शेष धर तिवारी
सटीक टिप्पणी युक्त सशक्त कविता
ReplyDeleteधन्यवाद नवीन भाई.
ReplyDeleteexcellent
ReplyDeleteख़ूबसूरत रचना तिवारी जी को मुबारकबाद।
ReplyDelete