अगर रातों पे हमदम चाँद का पहरा नहीं होता
हमारा ज़ख्मे दिल भी इस क़दर गहरा नहीं होता
नहीं मिलतीं अगर सागर से बलखाती हुई नदियाँ
समंदर अब तलक अपनी जगह ठहरा नहीं होता
भले धोखा सही लेकिन झलक पानी की दिखती है
कोई राही वगरना दाखिले सहरा नहीं होता
नहीं दिखता मगर बेटे को को मां पहचान लेती है
नज़र में उसकी उस जैसा कोई चेहरा नहीं होता
नहीं मिलतीं अगर सागर से बलखाती हुई नदियाँ
समंदर अब तलक अपनी जगह ठहरा नहीं होता
भले धोखा सही लेकिन झलक पानी की दिखती है
कोई राही वगरना दाखिले सहरा नहीं होता
नहीं दिखता मगर बेटे को को मां पहचान लेती है
नज़र में उसकी उस जैसा कोई चेहरा नहीं होता
सदाएं शोर सी गर गूंजती होतीं नहीं हर सू
खुदाया! जानता हूँ, तू कभी बहरा नहीं होता
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति....!!
ReplyDeleteनहीं मिलतीं अगर सागर से बलखाती हुई नदियाँ
ReplyDeleteसमंदर अब तलक अपनी जगह ठहरा नहीं होता
waah.... kaafi gahri abhivyakti
sunder rachna..
ReplyDeleteकैसे कहूँ को कैसे धन्यवाद कहूँ फिर भी धन्यवाद.
ReplyDeleteरश्मि प्रभा जी .... बहुत बहुत धन्यवाद.
दिनेश मिश्र जी, बहुत खुशी हुई पंडित जी आपको यहाँ देखकर. शुक्रिया.