वो सब्रो ज़ब्त की मीजां पे उनको तोलता होगा
खुदा दिल आशिक़ों का इसलिए ही तोड़ता होगा
हमारी नेक सीरत को समझ बैठा तू कमज़ोरी
तेरा दिल रूह की शह पर तुझे ही कोसता होगा
किये हैं संग कैसे चूर दरिया की रवानी ने
समंदर साहिलों को चूमकर ये पूछता होगा
मिली होगी रुआँसी मुफलिसी राहे शराफत पर
तभी इंसान ऐसी राह से मुह फेरता होगा
ज़मीं और चाँद लेते जा रहे हैं बारहा फेरे
जले कब तक मुसलसल शम्स भी ये सोचता होगा
दिलों के दरमियां सूदो ज़ियां की अहमियत क्या है
यक़ीनन बेवफा फिर भी खसारा देखता होगा
बिछड़ना तो मुक़द्दर था सफ़र में नाशनास अपना
मगर सबसे छुपाकर तू भी आंसू पोंछता होगा
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