शरर बाकी है खुद को मत जला तूँ
हमारी राख को मत दे हवा तूँ
तुझे पानी पे चलना सीखना है
तो फिर आँखों से दरिया मत बहा तूँ
सफीना सूए गिर्दाब इस लिए है
बना है खुद ही इसका नाखुदा तूँ
तुझे खैरात में मिलती थीं साँसे
मनाही हो गयी तो मर गया तूँ
अगर दम है तो कत्ले मुंसिफी कर
दिल दे मौत की मुझको सज़ा तूँ
मुनासिब जरह के दौरां यही है
खता तस्लीम कर और मुस्करा तूँ
शनासा भी बदल देते हैं रस्ता
मेरे माथे पे मुफलिस लिख गया तूँ
हक़ीक़त में बहुत छोटी है दुनिया
खला की बेकरानी मत दिखा तूँ
परिंदे बुन रहे हैं जाल मिलकर
शिकारी खैर अब अपनी मना तूँ
खड़ी है मुंसिफी आईन ले कर ले कर
वो नबीना है, आँखें मत दिखा तू
खड़ी है मुंसिफी आईन ले कर ले कर
वो नबीना है, आँखें मत दिखा तू
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