ये क्या हुआ कि आज बिखरने लगा हूँ मैं
आहट से खामुशी के भी डरने लगा हूँ मैं
मंजिल की है खबर न किसी राह का पता
मंजिल की है खबर न किसी राह का पता
अब कैसी मुश्किलों से गुजरने लगा हूँ मैं
रहने लगा है साया मेरा मुझसे दूर दूर
ऐसा गुनाह कौन सा करने लगा हूँ मैं
जिसकी हँसी पे था मैं दिलो जान से फ़िदा
मुस्कान पर भी उसकी, सिहरने लगा हूँ मैं
आईना मेरा मुझसे चुराने लगा नजर
क्या आख़िरी सफ़र को संवरने लगा हूँ मैं
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