कोंख में कविता
आज पूरी रात
सो नही पायी मैं
सुखाती रही
गीले शब्दों को
गर्म साँसों की आँच पर
आंसुओं ने
कर दिया था विद्रोह
गिरते रहे टप टप टप
भावों की भट्ठी पर
बुझाते रहे सुलगते विचारों को
और मैं लिख न सकी
कुछ भी
अपनी सृजन शीलता पर आश्वस्त
मैं दांत भींचे सहती रही
अजन्मी कविता की प्रसव-वेदना
नहीं हुआ कोई असर
बादलों से मिले प्रोत्साहन का भी
खूब बढ़ाया मनोबल
पर स्वयं ही बरस गये
और
हो गए पानी पानी
मुझे विशवास है
जन्म लेगी एक दिन
एक सुन्दर, सलोनी कविता
मेरी कोंख से
और भर जायेगी
मेरी सूनी गोंद