बेबसी में हम कभी रोते कभी हँसते रहे
मुश्किलों से बारहा हर हाल में लड़ते रहे
ज़िंदगी की आंच में जो मोम सा गलते रहे
वो मुसलसल वक़्त के सांचे में ही ढलते रहे
आज से बेहतर रहेगा कल इसी उम्मीद में
ज़िंदगी में कुछ सुहाने ख्वाब तो पलते रहे
बेगुनाही की सजा कोई सहेगा कब तलक
हो न तौहीने अदालत हम गुनह करते रहे
दे रहे फांसी सलीबों को सियासतदां यहाँ
फैसले दे कर भी मुंसिफ हाँथ ही मलते रहे
जब भी भ्रष्टाचार की दरिया से टूटा सब्रे बंद
मुश्किलों से बारहा हर हाल में लड़ते रहे
ज़िंदगी की आंच में जो मोम सा गलते रहे
वो मुसलसल वक़्त के सांचे में ही ढलते रहे
आज से बेहतर रहेगा कल इसी उम्मीद में
ज़िंदगी में कुछ सुहाने ख्वाब तो पलते रहे
बेगुनाही की सजा कोई सहेगा कब तलक
हो न तौहीने अदालत हम गुनह करते रहे
दे रहे फांसी सलीबों को सियासतदां यहाँ
फैसले दे कर भी मुंसिफ हाँथ ही मलते रहे
जब भी भ्रष्टाचार की दरिया से टूटा सब्रे बंद
लोग सड़कों पर उतर कर फैसले करते रहे
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