सपने में क्या खूब सुहाना पल देखा है
पत्थर की आँखों से ताजमहल देखा है
बैठ सहेजे छाँव उन्ही कोमल छालों को
देकर जिनको धूप हुई बेकल देखा है
मुफलिस के आंसू भी साथ नहीं देते हैं
जाते बरबस आँखों से हर पल देखा है
गुदड़ी में भी लाल छिपे होते हैं अक्सर
कीचड में भी खिलते नीलकमल देखा है
रात प्रसव पीड़ा से होकर जब भी गुजरी
हमने हर इक बार सुनहरा कल देखा है
माँ के बारे में बस इतना कह सकता हूँ
"मैंने ममता का गीला आँचल देखा है "
माँ बापू बहना भाई हैं सच्चे रिश्ते
बाकी रिश्तों को इनका क़ायल देखा है
पत्थर की आँखों से ताजमहल देखा है
बैठ सहेजे छाँव उन्ही कोमल छालों को
देकर जिनको धूप हुई बेकल देखा है
मुफलिस के आंसू भी साथ नहीं देते हैं
जाते बरबस आँखों से हर पल देखा है
गुदड़ी में भी लाल छिपे होते हैं अक्सर
कीचड में भी खिलते नीलकमल देखा है
रात प्रसव पीड़ा से होकर जब भी गुजरी
हमने हर इक बार सुनहरा कल देखा है
माँ के बारे में बस इतना कह सकता हूँ
"मैंने ममता का गीला आँचल देखा है "
माँ बापू बहना भाई हैं सच्चे रिश्ते
बाकी रिश्तों को इनका क़ायल देखा है
No comments:
Post a Comment