हर लहर सागर की साहिल तक पहुँच पाती नहीं
मिट भले जाती है लेकिन लौट कर जाती नहीं
मिल गयी मंजिल उसे जिसने सफर पूरा किया
मंजिले मक़सूद चलकर खुद कभी आती नहीं
देख कर चेहरा, पलट देते हैं अब वो आइना
मौसमे फुरकत उन्हें सूरत कोई भाती नहीं
ज़िंदगी तो कर्म-फल के दायरों में है बंधी
गम खुशी सब में बराबर बाँट वो पाती नहीं
इस जहां के बाद भी है इक जहां, जाकर जहाँ
हम समझते हैं, कोई शै साथ में जाती नहीं
बहुत खूब तिवारी जी, एक एक शे’र दहाड़ रहा है। बहुत बहुत बहुत बधाई स्वीकार करें।
ReplyDeleteयही अंतिम सत्य है
ReplyDeleteकोई शै साथ में जाती नहीं