ये ज़हनी लाचारी कब तक
ख़ूद से ही अय्यारी कब तक
टू जी के जी फिर जीजा जी
घर में चोर बजरी कब तक
बीती रात झाड़ते बिस्तर
सोने की तैयारी कब तक
हमने दी आजादी कहकर
जनता से मक्कारी कब तक
जो धोखा देते हैं हमको
उनसे रिश्तेदारी कब तक
कंधे पर बैठाना जायज़
कानो में पिचकारी कब तक
दुनिया हमको मूरख समझे
ऐसी दुनियादारी कब तक
बूढ़े गुड्डे की शादी की
देश करे तैयारी कबतक
करने अभ्युत्थान धर्म का
आओगे गिरिधारी कब तक
ख़ूद से ही अय्यारी कब तक
टू जी के जी फिर जीजा जी
घर में चोर बजरी कब तक
बीती रात झाड़ते बिस्तर
सोने की तैयारी कब तक
हमने दी आजादी कहकर
जनता से मक्कारी कब तक
जो धोखा देते हैं हमको
उनसे रिश्तेदारी कब तक
कंधे पर बैठाना जायज़
कानो में पिचकारी कब तक
दुनिया हमको मूरख समझे
ऐसी दुनियादारी कब तक
बूढ़े गुड्डे की शादी की
देश करे तैयारी कबतक
करने अभ्युत्थान धर्म का
आओगे गिरिधारी कब तक