दर्द अगर खुद दवा नहीं होता
जख्म कोई भरा नहीं होता
तुम तसव्वुर में जब नहीं होते
तब भी क्यूँ दूसरा नहीं होता
ज़द पे जब हो नहीं कोई मंज़िल
रास्ता रास्ता नहीं होता
इसकी फितरत है सामने आना
सच पसे आइना नहीं होता
ज़र्द पत्ते हमें बताते हैं
पेड़ हरदम हरा नहीं होता
अश्क़ अफशां नहीं रहे होते
घर किसी का बचा नहीं होता
बच के चलता जो खुद-परस्ती से
आदमी यूँ गिरा नहीं होता
दर्द है ज़ख्म का रफ़ीक़ ऐसा
जो कभी बेवफा नहीं होता