Wednesday, October 9, 2013

वो फिर से जुड़ेंगे ये इमकान है

वो फिर से जुड़ेंगे ये इमकान है
अभी टूटे रिश्तों में कुछ जान है 


अयाँ है अभी जो मेरी दस्तरस
वो तहरीर का सिर्फ उन्वान है

नहीं है कोई कारवाँ मेरे साथ
ये तनहा सफ़र का ही सामान है

तुम आँसू की उस बूँद को पोंछ दो
जो पलकों पे आ के पशेमान है

निसाबों से हट के पढ़ा कुछ नहीं
तभी ज़िंदगी में ये तूफ़ान है

समझते हैं कुछ नासमझ जाने क्यूँ 
खुदा से मेरी जान पहचान है

 मुझे ज़िंदगी ने ये समझा दिया
की दिल से भी ऊपर गिरीबान है

जुबां इक मगर कान दो हैं मिले
 
खुदा का निहां  इसमें फरमान है

भरोसा नहीं था जिसे खुद पे ही
वो मंजिल को पा के भी हैरान है