Monday, September 30, 2013

शरर बाकी है खुद को मत जला तूँ

शरर बाकी है खुद को मत जला तूँ 
हमारी राख को मत दे हवा तूँ 

तुझे पानी पे चलना सीखना है 
तो फिर आँखों से दरिया मत बहा तूँ 

सफीना सूए गिर्दाब इस लिए है
बना है खुद ही इसका नाखुदा तूँ 

तुझे खैरात में मिलती थीं साँसे 
मनाही हो गयी तो मर गया तूँ 

अगर दम है तो कत्ले मुंसिफी कर
दिल दे मौत की मुझको सज़ा तूँ 

मुनासिब जरह के दौरां यही है 
खता तस्लीम कर और मुस्करा तूँ 

शनासा भी बदल देते हैं रस्ता
मेरे माथे पे मुफलिस लिख गया तूँ 

हक़ीक़त में बहुत छोटी है दुनिया 
खला की बेकरानी मत दिखा तूँ 

परिंदे बुन रहे हैं जाल मिलकर 
शिकारी खैर अब अपनी मना तूँ

खड़ी है मुंसिफी आईन ले कर ले कर 
वो नबीना है, आँखें मत दिखा तू

Tuesday, September 24, 2013

निभा कर फ़र्ज़ सब, सुस्ता रहा हूँ

निभा कर फ़र्ज़ सब, सुस्ता रहा हूँ
ख़ुदा ! तेरे इशारे को रुका हूँ
 
वही पीछे पड़े हैं ले के पत्थर
मैं जिनकी फ़िक्र में  पागल हुआ हूँ
 
मेरे सीने पे रख कर पाँव बढ़ जा
तेरी  मंज़िल नहीं मैं रास्ता हूँ
 
मुझे अपनों ने क्यूँ ठुकरा दिया है
ये गैरों से लिपट कर पूंछता हूँ
 
मुझे मालूम है मेरी हक़ीक़त
निज़ामे ज़ीस्त का मैं आइना हूँ
 
किसी को भी रुला सकता हूँ पल में
बजाहिर  यूँ तो पत्थर हो गया हूँ

सबब दरिया है या उसकी रवानी
जो पत्थर हो के भी मैं बह चला हूँ
 
मेरी अब नब्ज़ भी चलती है डर के
उसे लगता है मैं उससे खफ़ा हूँ
 
धड़कना बंद कर दे ऐ मेरे दिल
सुकूं तुझको मिले, मैं भी थका हूँ

Saturday, September 14, 2013

मेरे दिल के सिवा रहना कहाँ आसान होगा

मेरे दिल के सिवा रहना कहाँ आसान होगा
इलाक़ा दूर बस्ती से अभी वीरान होगा

जले दिल का धुआँ छाया रहेगा जेहन पर जब
ख़ुशी पाने का फिर पूरा कहाँ अरमान होगा

अगर समझेगा अपने फ़र्ज़ को एहसान कोई
यक़ीनन सख्श वो अन्दर से बेईमान होगा

यक़ीं से सर झुका दे सामने पत्थर के भी जो
मकीं दिल में उसी इंसान के भगवान होगा

हमारी रूह जिस दिन जिस्म से लेगी बिदाई
वो मंजर देखकर रब भी बहुत हैरान होगा

रखा है क्या किसी ने हाथ दुखती रग पे तेरी
भले दुश्मन लगे वो साहिबे ईमान होगा

ज़हन्नुम और ज़न्नत हैं इसी दुनिया में क़ायम
मिलेंगे जब खुदा की ओर से फरमान होगा

Thursday, September 12, 2013

पहले तू उकसाया कर

पहले तू उकसाया कर 
फिर घर में छुप जाया कर 

जब मैं आऊँ पास तेरे 
थोडा सा शरमाया कर

उंगली अपने बालों में तू 
मुझसे फिरवाया कर

फिर कंधे पर सर रख कर 
मुझसे आँख चुराया कर

अपने मन की बातों को 
यूँ मुझको समझाया कर

जो आपास की बाते हैं 
सब को मत बतलाया कर

घर वाले भिन्नाते हैं 
तू जल्दी उठ जाया कर 

फिर जल्दी से करके स्नान 
पूजा घर में जाया कर

माँ को अच्छा लगता है 
जय जगदीश सुनाया कर 

बाबूजी के आगे तू 
घूंघट में ही जाया कर 

छुटका है शैतान बहुत 
बच कर आया जाया कर

दीदी खुन्नस खाती हैं 
तू थोडा झुक जाया कर

माँ को सासू मत कहना 
माँ ही उन्हें बुलाया कर 

घर में खुशियों के दीपक 
सुबहो शाम जलाया कर

Wednesday, September 11, 2013

माहो अख्तर आसमां घबरा गए हैं



आप जो जल्वे बिखेरे आ गए हैं
माहो अख्तर देखकर घबरा गए हैं 

खोजते हैं क्यूँ ये बशरीयत खला में
क्यूँ ज़मीं से आदमी उकता गए हैं 

नौजवानों को निज़ामत क्यूँ न दे दें 
जब सियासतदां सभी सठिया गए हैं

साफ़ दिख पाया नहीं चेहरा उन्ही का
जो मेरी आँखों को यूँ छलका गए हैं 

हो गए हैं चाँदनी और चाँद मुब्हम 
जब से उनके बीच बादल छा गए हैं 

टूटना इनका मुक़द्दर हो गया है 
खाब मेरे इस कदर टकरा गए हैं 

एक ज़र्रे की उन्हें क़ुव्वत पता है 
देखकर सहरा को जो गश खा गए हैं


Tuesday, September 10, 2013

वो सब्रो ज़ब्त की मीजां पे उनको को तोलता होगा

वो सब्रो ज़ब्त की मीजां पे उनको तोलता होगा 
खुदा दिल आशिक़ों का इसलिए ही तोड़ता होगा 

हमारी नेक सीरत को समझ बैठा तू कमज़ोरी 
तेरा दिल रूह की शह पर तुझे ही कोसता होगा

किये हैं संग कैसे चूर दरिया की रवानी ने 
समंदर साहिलों को चूमकर ये पूछता होगा 

मिली होगी रुआँसी मुफलिसी राहे शराफत पर 
तभी इंसान ऐसी राह से मुह फेरता होगा 

ज़मीं और चाँद लेते जा रहे हैं बारहा फेरे 
जले कब तक मुसलसल शम्स भी ये सोचता होगा 

दिलों के दरमियां सूदो ज़ियां की अहमियत क्या है 
यक़ीनन बेवफा फिर भी खसारा देखता होगा

बिछड़ना तो मुक़द्दर था सफ़र में नाशनास अपना 
मगर सबसे छुपाकर तू भी आंसू पोंछता होगा

हमारी बेबसी को देखकर जो मुस्कराता है

हमारी बेबसी को देखकर जो मुस्कराता है
उसी को देखकर बरबस कलेजा मुह को आता है

अभी ज़िंदा हूँ मैं तू याद कर ले खामियां मेरी
असर हर बद्दुआ का जीते जी ही रंग लाता है

मैं अपनी बदनसीबी की शिकायत क्यूँ करूँ तुमसे
मुक़द्दर कब किसी मुफलिस के भी हिस्से में आता है

ज़हां रौशन है जिसके ताब से आखिर वो सूरज भी
बुरा हो वक़्त तो पानी में गिरकर टूट जाता है

रहेगा खुश भला कैसे बिछड़कर कोई अपनों से
फलक से टूटकर तारा कहाँ फिर टिमटिमाता है

मुक़द्दर के वरक़ पर गलतियाँ तुमसे हुई होंगी
तुम्हारे पास मेरा भी खुदाया एक खाता है



Sunday, September 8, 2013

देखता जा आसमां अब तूं मेरी परवाज़ को

देखता जा आसमां अब तूं मेरी परवाज़ को 
याद रक्खेगा ज़माना मेरे इस आगाज़ को 

वक़्त की सब गर्द मैंने अपने तन से झाड़ दी 
सुर नए दूंगा मैं अपने हर पुराने साज़ को 

दोस्तों और दुश्मनों को खूब मैंने पढ़ लिया 
ये पढेंगे अब हमारे मुखतलिफ़ अंदाज़ को 

फ़र्ज़ मैं अपने निभा पाया न जाने किस तरह 
भूल पाऊँगा खुदा कैसे तेरे एजाज़ को

मैं नज़रंदाज़ करता ही रहा हर ख़म तेरे
कौन पोशीदा रखेगा यूँ किसी के राज़ को 

दिल धड़कने के सिवा अब और कुछ करता नहीं 
सुन लिया है जब से इसने रूह की आवाज़ को 

खलबली सी मच गयी है अब उकाबों में यहाँ 
जब परिंदों ने बनाया दोस्त तीरंदाज़ को

Friday, September 6, 2013

गला आबे समंदर से तो तर होता नहीं है

गला आबे समंदर से तो तर होता नहीं है 
मगर आंसू पिए बिन भी बसर होता नहीं है 

नहीं निभतीं हैं दुनियादारियाँ मुझसे खुदाया 
हर इक के सामने नीचा ये सर होता नहीं है 

समंदर बन के मैं कब तक रहूँ पलकें बिछाए 
मुक़द्दर में सभी के तो क़मर होता नहीं है 

यक़ीं करना हर इक के अश्क़ पर है नामुनासिब
निहां हर सीप में यकता गुहर होता नहीं है

खुदाई के लिए इंसानियत है शर्त पहली 
बिना रस्ते के तो पूरा सफ़र होता नहीं है 

मिली हैं जान देकर क़ब्र में नीदें सुकूं की 
खुदा क़ुर्बानियों से बेखबर होता नहीं है 

झलक दिख जाए तेरी तो मना लूं ज़श्न कुछ दिन 
हर इक दिन ईद का चाँद अर्श पर होता नहीं है

Tuesday, September 3, 2013

दिन है सारा सामने क्यूँ रात की बातें करें

दिन है सारा सामने क्यूँ रात की बातें करें 
सहन में आ बैठकर बरसात की बातें करें 

तितलियों के पंख के सब रंग भर लें ज़ेहन में 
फिर गुलों गुंचों के भी हालात की बातें करें 

सोचता है क्या ज़मीं की यूँ तबाही देखकर 
आसमां के मुख्तलिफ़ ज़ज़्बात की बातें करें

बिक रही है जब यहाँ इंसान की इंसानियत 
टूटते तारों से क्यूँ खैरात की बातें करें 

जिनकी शख्सीयत तसव्वुर में समा पाती नहीं 
माह, समंदर, साहिलों ज़र्रात की बातें करें 

मुह दिखाई में दिया क्या चाँदनी को चाँद ने 
सुब्ह को शब् से मिली सौगात की बातें करें 

जब लबों की थरथराहट पर हँसे थे अश्क़ भी 
आज कुछ ऐसे हसीं लम्हात की बातें करें