Friday, August 16, 2013

चाँद को अपना मुखड़ा दिखा दीजिये

चाँद को अपना मुखड़ा दिखा दीजिये 
उसको औकात उसकी बता दीजिये दीजिये 

ऐसी बादे-सबा और तिश्ना-लबी 
बढ़ न  जाए मरज कुछ दवा दीजिये 

रात भर के लिए ये सज़ा कम नहीं 
दिन ढले देखकर मुस्करा दीजिये 

ख्वाब में भी न देखें किसी और को 
मेरी आँखों को ये बद्दुआ दीजिये 

हाले-दिल आपका मैं समझ जाऊँगा 
सिर्फ नज़रें मिलाकर झुका दीजिये 

मेरे दिल ने गवाही सरे-आम दी 
फैसला जो भी हो अब सुना दीजिये 

बन तो जाऊं मैं दरिया मगर शर्त है 
आप खुद को समंदर बना दीजिये 

मैं तो कुर्बान होने को तैयार हूँ 
आप खुद को भी कुछ हौसला दीजिये

मौत पाकर तो आज़ाद हो जाऊंगा 
आप जीने की मुझको सज़ा दीजिये



ChaaNd ko apna mukhda dikha deejiye
Usko auqaat uski bataa deejiye 

aisi baade-saba aur tishna-labee
badh n jaaye maraj kuchh davaa deejiye 

raat bhar ke liye ye saza kam nahiN
din dhale dekh kar muskaraa deejiye

khwaab me bhee n dekheN kisee aur ko
meri aaNkhoN ko ye badduaa deejiye

haale-dil aapka maiN samajh jaaooNga
sirf nazreN milaa kar jhukaa deejiye 

mere dil ne gawaahi sare-aam dee
faisalaa jo bhi ho, ab suna deejiye

ban to jaaooN maiN dariya magar shart hai 
aap khud ko samandar bana deejiye 

maiN to qurbaan hone ko taiyaar hooN
aap khud ko bhee kuchh hausala deejiye

maut paakar to azaad ho jaaooNga
aap jeene ki mujhko saza deejiye
 

Wednesday, August 7, 2013

तू यक़ीनन हमसफ़र अच्छा लगा

तू यक़ीनन हमसफ़र अच्छा लगा 
मुस्कराता  चाँद पूनम का लगा 

नाशनास  अफराद की इस भीड़ में
तू न जाने क्यूँ मुझे अपना लगा 

ज़ज़्ब हैं रुख पर सुकूनो शादमानी 
यूँ तेरा चेहरा बहुत प्यारा लगा 

तेरी सोहबत में कटा है वक़्त यूँ 
रास्ता मुझको बहुत छोटा लगा 

खुश-नसीबी बाप माँ की सोचकर 
रश्क सा उनसे मुझे होता लगा 

तेरी  अज़्मत की बुलंदी देखकर
तू मुझे बेटी नहीं बेटा लगा

खिलखिलाती जब हँसी  तेरी सुनी 
तू मुझे बहता हुआ झरना लगा 

हम जब अपनी मंज़िलों पर आ गए 
भीड़ में भी  मैं बहुत तनहा लगा


तुम्हारे वास्ते रोना मुझे अच्छा लगे क्यूँ

तुम्हारे वास्ते रोना मुझे अच्छा लगे क्यूँ
तुम्हे खोना ज़ियादा की तवक्को सा लगे क्यूँ

यक़ीं मुझको तो है मैं पार कर जाऊंगा दरिया
तू ही जाने तुझे मेरा घडा कच्चा लगे क्यूँ

भले होती है तीखी धार बातों में तुम्हारी
मगर हर दर्द अब दिल को मेरे मीठा लगे क्यूँ

तेरी सीरत से होते हैं अयाँ किरदार कितने
मगर सूरत से तू अब भी मुझे बच्चा लगे क्यूँ

तक़ीया* है मगर वाज़िब सवाल आता है मन में
हर इक सिक्का मुझे अपना ही अब खोटा लगे क्यूँ

खुशी में साथ दिखती है रफीक़ों की ज़माअत
मगर वक़्ते मुसीबत तू मुझे तनहा लगे क्यूँ

तेरी आँखों से जब आँसू छलकते देखता हूँ
समंदर से निकलता सा कोई दरिया लगे क्यूँ

*वह बात जो सच हो पर कहने का मन न करे