Wednesday, June 26, 2013

रूह को दे के छाले गया

रूह को दे के छाले गया
फिर भी मुझसे दुआ ले गया

मैं तुम्हारी खुशी के लिए
दुश्मनी भी निभा ले गया

एक साया ही था हमनशीं
वो भी शब के हवाले गया

जांकनी में भी मुझसे कोई
ज़िन्दगी की दुआ ले गया

कैसे नाराज़ करता उसे
मेरे खूं की रिज़ा ले गया

क्यूँ सफीने को गिर्दाब में
आज ख़ुद नाखुदा ले गया

झाँक अपने गिरेबान में
जान ले, क्या मेरा ले गया

Monday, June 10, 2013

कभी जब वो तोलेगा खुद को नबी से

कभी जब वो तोलेगा खुद को नबी से
तब इंसान होगा सवा आदमी से

मकीं है मेरे दिल में आसेब कोई
जो हर आने वाला गया बेकली से

वही जानता है मज़ा ज़िन्दगी का
जिसे मौत आयी न हो खुदकुशी से

न हो जिसमे इम्काने आदाब हमको
गुजरते नहीं हम कभी उस गली से

मिलेंगे बिना मोल मज़हब के ठेके
अगर आग फैला सकें आप घी से

हक़ीक़त का था इसलिए जर्द चेहरा
मुखातिब थे सपने बड़ी बेरुखी से

नया इंक़लाब आएगा अब ज़हां में
मिलेंगे उजाले गले तीरगी से

ग़रज़ क्या की जाऊं मैं मंदिर ता मस्ज़िद
खुदा जब है खुश मेरी सादादिली से

Monday, June 3, 2013

बुज़ुर्गों की जिन्हें हक़ बात भी अच्छी नहीं लगती

बुज़ुर्गों की जिन्हें हक़ बात भी अच्छी नहीं लगती
उन्हें ताउम्र अपनी ज़िन्दगी अच्छी नहीं लगती

दिखा मत ज़ोर अपना अब्र तू नाशाद सूरजको
किसी भी दिलजले को दिल्लगी अच्छी नहीं लगती

खिला रहता नहीं क्यूँ चाँद यकसाँ जैसे पूनम का
हसीं चेहरों पे फीकी से हँसी अच्छी नहीं लगती

जिसे जो रास आये, रास्ता कर ले इबादत का
अक़ीदत पर कभी छीटाकशी अच्छी नहीं लगती


फ़रीक़े ज़िन्दगी को ज़िंदगी से क्या गिला शिकवा
शरीके हाल से नाराज़गी अच्छी नहीं लगती

दिखे जब अब्र अफसुर्दा तो सूरज भी हुआ बेदिल
हो दुश्मन ग़मज़दा तो दुश्मनी अच्छी नहीं लगती

हिसारे ज़िस्म से आज़ाद हो ऐ रूहे पाकीज़ा
पुराने पैरहन से दोस्ती अच्छी नहीं लगती