Wednesday, February 20, 2013

किनारों के बिना दरिया बहा दो


बहुत दम है तो ये करके दिखा दो
किनारों के बिना दरिया बहा दो

भले हंस लो मेरी नाकामियों पर
नहीं डूबे जो वो सूरज उगा दो

खिला है सेह्न में जो चाँद मेरे
उसे तुम सेह्न से अपने हटा दो

नहीं बर्दाश्त है सच आईने का
उसी में अक्स उसका ही बना दो

जमाने की बहुत पर्वा है तुमको 
जमाने को यकीं इसका दिला दो 

जो बच्चा रूठ कर बैठा हो माँ से
उसे गर हो सके तो तुम हंसा दो  
गुमां है अपने सरमाये पे तुमको
किसी खुद्दार की गर्दन झुका दो  





Tuesday, February 12, 2013

उम्र भर धूप में नहाये हम

अश्क उनके तो पोंछ आये हम
खुद मगर मुस्करा न पाए हम

छाँव औलाद के लिए बनकर
'उम्र भर धूप में नहाये हम'

घर मकां को बना नहीं पाते
तोड़ते हैं बसे बसाये हम

शह्र ने खाब भी नहीं बख्शे
गाँव पहुचे लुटे लुटाये हम
हक़ हमें है गुनाह का आदम
आखिरस हैं तेरे ही जाए हम 
 भूल बैठे, बनी जब अपने पर
फलसफे सब रटे रटाये हम

  ख्वाहिशों ने कही ग़ज़ल लेकिन
एक भी शेर कह न पाए हम

शायरी का नशा चढ़ा जब से
होश में फिर कभी न आये हम

Tuesday, February 5, 2013

तू अगर बेहौसला होता नहीं


तू अगर बेहौसला होता नहीं
देख कर हमदर्द को रोता नहीं 

फिक्र होती है नए दिन की उसे
चैन से सूरज कभी सोता नहीं

साथ सदियों से समंदर है मगर
साहिलों में ज़िंदगी बोता नहीं

ख्वाब में बेदाग़ देखा है उसे
यूँ ही दरिया चाँद को धोता नहीं

दूरियाँ कितनी भी तै कर ले मगर
रास्ता मंजिल कभी होता नहीं

हम अगर मुंसिफ की नीयत जानते
तो मुखालिफ फैसला होता नहीं