Thursday, July 19, 2012

जो दिल जलाए वही मेरी ज़िंदगी क्यूँ है

न जाने दिल में बसी ऐसी बेकली क्यूँ है 
जो दिल जलाए वही मेरी ज़िंदगी क्यूँ है

'हवा के दम' से ही जिंदा है लौ चिरागों में
हवा को जलते चिराग़ों से दुश्मनी क्यूँ है

'चराग घर का' अंधेरे में बुझ गया शायद 
ये आधी रात को उस घर में रोशनी क्यूँ है 

ये चाँद खुश था अगर चांदनी की बाहों में    
सहर हुई तो जमीं पर दिखी नमी क्यूँ है 

मेरे ही अज्म से आबाद शह्र हैं कितने 

मेरे नसीब में आबाद मुफलिसी क्यूँ है


मेरा उसूल है, मैं सच के साथ रहता हूँ 
मुझे इसी की सजा बारहा मिली क्यूँ है  

Sunday, July 15, 2012

और थोड़ी देर तक मनुहार कर लूं

आज फिर अंतःकरण से रार कर लूं
और थोड़ी देर तक मनुहार कर लूं

शब्द जिह्वा पर किये हैं मौन धारण
दे सहज वाणी उन्हें साकार कर लूं

और थोड़ी देर तक ठहरो बटोही
जो तुम्हे भाये वही श्रृंगार कर लूं

हर परिस्थिति में रहा मैं सत्य पथ पर
इस अपाहिज झूंठ का प्रतिकार कर लूं

मत परोसो अब मुझे सपने सलोने
मैं किसी से तो उचित व्यवहार कर लूं

सोचता हूँ, और सह सकता नही तो
आख़िरी आगोश को स्वीकार कर लूं

सच हताशा में स्वयम से कह रहा है
झूठ का मैं भी न क्यूँ व्यापार कर लूं

कुछ सुलगते कुछ सिसकते शब्द पीकर
मौन को मैं क्यूँ न अंगीकार कर लूं

सृष्टि की परिकल्पना में है सुनिश्चित
अंत के आरम्भ का आधार कर लूं


Tuesday, July 3, 2012

चाहता तो हूँ तुम्हे लोरी सुनाऊँ

चाहता तो हूँ तुम्हे लोरी सुनाऊँ
थपकियाँ दे गोंद में तुमको सुलाऊँ

पंख होते पास तो उड़कर पहुंचता
प्यार से आशीष देता और कहता
पाँव मेरे अब लरजते हैं तो कैसे
गोंद में लेकर तुम्हे झूला झुलाऊँ

चाहता तो हूँ तुम्हे लोरी सुनाऊँ
थपकियाँ दे गोंद में तुमको सुलाऊँ

श्वांस का क्रंदन भला कैसे सुनूं मैं
जो सिखाया है तुम्हे, कैसे गुनूं मैं
सिसकियाँ अपनी नहीं सुन पा रहा हूँ
फिर भला कैसे तुम्हे मैं चुप कराऊँ

चाहता तो हूँ तुम्हे लोरी सुनाऊँ
थपकियाँ दे गोंद में तुमको सुलाऊँ

मैं जमाने कि निगाहों से बचाकर
चाहता हूँ देखना तुमको शिखर पर
तुम अगर खुद को न पहचानो तो कैसे
मैं जमाने से भला परिचय कराऊँ

चाहता तो हूँ तुम्हे लोरी सुनाऊँ
थपकियाँ दे गोंद में तुमको सुलाऊँ

वो मुझे ही देख इठलाना तुम्हारा
रूठ कर हर बात मनवाना तुम्हारा
जी लिया हर पल तुम्हारे साथ जीवन
दुःख नही, जो मौत से अब हार जाऊं


चाहता तो हूँ तुम्हे लोरी सुनाऊँ
थपकियाँ दे गोंद में तुमको सुलाऊँ

ये तो  दिन रात बस तडपता है 

ये तो  दिन रात बस तडपता है
लोग कहते हैं दिल धडकता है

देखते  हैं  वो  जब  भी  आईना 
उनका दिल ख़ुद पे ही मचलता है 

सोज़ शिद्दत के साथ हो पैहम  
सख़्त फ़ौलाद भी पिघलता है 

उसने मंज़िल बदल दी क्या अपनी
जो  ये  रस्ता भी राह तकता है 

बद्दुआ बेअसर रही मुझपर 
रब दुआ का हिसाब रखता है

रास आया है खूं मेरा उनको 
यूँ ही चेहरा नही चमकता है