Saturday, June 16, 2012

बहुत चाहा कि तेरी वज्म में आया करूँ मैं

बहुत चाहा कि तेरी वज्म में आया करूँ मैं
अना को बेचकर खुद पर ही शर्माया करूँ मैं

तेरी मजबूरियाँ क्या हैं, नही है इल्म मुझको
मगर कहके दवा क्यूँ जह्र को खाया करूँ मैं

तेरा है शौक़ सुनना राग दरबारी तो कैसे
वहीं पर प्यार के नग्मे भला गाया करूँ मैं

न जाने कैसे कैसे लोग आने लग गये हैं
अदब से बेअदब को कैसे अपनाया करूँ मैं

कोई भगवान को पत्थर कहे, श्रद्धा है उसकी
खुदा कह कर खुदा को क्यूँ न सुख पाया करूँ मैं



Saturday, June 2, 2012

अगर भाई चारे की बुनियाद होगी

अगर भाई चारे की बुनियाद होगी
यकीनन खुशी घर में आबाद होगी

लगे यूँ जमीं पर उतर आया सूरज 
क्या दुनियाँ हमारी ये बर्बाद होगी ?

मैं हूँ मुत्तहम पर सहे जा रहा हूँ   
सजाओं कि कोई तो मीआद होगी 

जमीं पर कदम गर नहीं हैं तेरे अब 
तो मंजिल तेरी बागे शद्दाद होगी

जो "मैं" को ही मिलती रहेगी तवज्जोह 
अना ही अदीबों की उस्ताद होगी 

अमर जो हर इक माँ को कर दे जहां में 
कभी तो दवा ऐसी ईजाद होगी 

जो गज़लों को सुनकर बना ऐब चीं है 
ग़ज़ल की वो अपनी ही औलाद होगी