Tuesday, February 28, 2012

जो खुद को भूल चुका है वो यार किसका है

जो खुद को भूल चुका है वो यार किसका है
न जाने फिर भी तुम्हे इंतज़ार किसका है

हरेक सिम्त जो अफ्सूरदा दिखे मुझको
मकीं बिना ये मकां शानदार किसका है

नही बरसते कभी अब्र गरजने वाले
लगा जो तंज उसे नागवार, किसका है

चुका दिया है वतन का जो क़र्ज़ था उस पर
जवां वो वीर कहो कर्ज़दार किसका है

कहो जमीन सा या कह लो आसमां जैसा 
बहुत अजीब है, ये शाहकार किसका है

निभा सको तो निभा लो यकीन को अपने
अगर तुम्हारा नही है तो प्यार किसका है

कोई तो बात हुई है जरूर महफ़िल में
बहुत उदास खडा जो, शिकार किसका है

तू रखना याद हमेशा उसी की ममता को
मिला तुम्हे है जो अब तक दुलार किसका है

लिया था सुर्ख  कभी इक गुलाब हाथों में
चुभा ये दिल में तभी से जो खार किसका है




हमसे न हुई ऐसी कोई बात दरमियां

हमसे न हुई ऐसी कोई बात दरमियां  
है कौन जो करता है खुराफात दरमियां

हो तुम भी वही मैं भी वही, वज्ह क्या हुई 
होने जो लगीं तर्के मुलाक़ात दरमियां  

दुनिया में भले भी हैं बुरे भी हैं इर्द गिर्द
करते हैं बुरे लोग फसादात दरमियां

मैंने तो कभी भी न कहा भूल जा मुझे
फिर कैसे हुईं ऐसी वजूहात दरमियां

होती तो है बरक़त जो मुहब्बत रहे मकीं
करते ही रहे दोनों नियाज़ात दरमियां

आऊँ न बुलाने पे तुम्हारे हुज़ूर में
ऐसे न कभी होंगे ये हालात दर्मियां

आँसू है तेरे मेरे लिए जामे खुदकुशी
आँसू है मेरे रूहे अलामात दरमियां


जब भी मेरा गमज़दा होना जरूरी हो गया

जब भी मेरा गमज़दा होना जरूरी हो गया
यक ब यक घर का हर इक कोना जरूरी हो गया

मैं भिगोता जा रहा हूँ आस्तीं बस इस लिए
जो न होना था वही होना जरूरी हो गया

जाने कितने रंग दिखलाएगी मेरी ज़िंदगी
आज हँसने के लिए रोना जरूरी हो गया

जो कभी चाहा हुआ हासिल मुझे बस ख़्वाब में
ख़्वाब में जो भी मिला, खोना जरूरी हो गया

क़द्र रिश्तों की पता है, हम निभाते भी रहे
पर नये हालात में ढोना जरूरी हो गया

मैं अगर भटका तो मेरी जान जायेगी जरूर
जान से पर हाथ अब धोना जरूरी हो गया

ज़िंदगी की जंग में होती रहीं नीदें हराम
ऐसा लगता है कि अब सोना जरूरी हो गया



मुमकिन है तुझको उसकी हकीकत पता न हो

मुमकिन है तुझको उसकी हकीकत पता न हो
मुफलिस जो दिख रहा है कहीं वो खुदा न हो  

अक्सीर दिल के दर्द की है इक दवा मुफ़ीद
झुक कर उठा उसे जो कभी खुद उठा न हो 

मुझसे गले मिला तो नयी बात क्या हुई
उसको गले लगा जो तेरा हमनवा न हो 

दुश्वारियों से हो के परेशान तू न रुक
जलने में क्या मज़ा जो मुखालिफ हवा न हो ?

होने लगा है ऐसा भी 'इन्साफ' आजकल 
जिसने किया है जुर्म उसी को सजा न हो

उनकी उदासियों का पता ऐसे चल गया
यूँ हंस रहे थे जैसे कहीं कुछ हुआ न हो

खुद को नवाज़ना तो बड़ी आम बात है
उस को नवाज़ जिसका कोई भी खुदा न हो

Thursday, February 23, 2012

खुदा की खैर है महरूमें दस्तो पा नहीं हूँ मैं

खुदा की खैर है महरूमें दस्तो पा नहीं हूँ मैं
ये क्या तकदीर लिख दी जैसे इक बन्दा नहीं हूँ मैं

तुम्हारी बेरुखी से रंज है, रुसवा नहीं हूँ मैं 
कसम तन्हाइयों की आज भी तन्हा नही हूँ मैं 


गले मुझको लगाने को तडपती है मेरी मंजिल
सफर की मुश्किलों से इस लिए डरता नही हूँ मैं

यकीं है, रात को मैं दिन कहूँ, सूरज निकल आये 
मगर रौशन खुद अपने घर को कर पाता नही हूँ मैं 

तुम्हारा अक्स आईना दिखायेगा कभी तुमको 
मैं आईना बना फिरता रहूँ ऐसा नहीं हूँ मैं  

अदावत और मुहब्बत में ज़रा सा फर्क होता है 
मुझे मालूम है तुमसे कभी कहता नहीं हूँ मैं 

चलो हम आज इक वादा निभाने का करें वादा 
निभा लो दुश्मनी जिसके लिए शैदा नहीं हूँ मैं

किसी इंसान में कमियाँ हैं तो कुछ खूबियाँ भी हैं
फक़त कमियाँ ही देखूं ऐसा कर पाता नहीं हूँ मैं

लड़ा हूँ ज़िंदगी से ज़िंदगी भर ज़िंदगी की जंग
खुदा का शुक्र है ये आज तक हारा नही हूँ मैं

किसी के काम आ जाऊं तो जीना हो सफल मेरा
फक़त जीने की खातिर ज़िंदगी जीता नही हूँ मैं

Sunday, February 12, 2012



ख़्वाब की ताबीर पर मैं मुस्कराया रात भर
चांदनी में आज मैं जी भर नहाया रात भर

ज़िंदगी दो चार दिन की है इसे हँस कर जियो 
मानता वो है नही, मैंने मनाया रात भर

ताक़यामत तो नही रहती है कोई शै मगर
दोस्तों की बेरुखी पर तिलमिलाया रात भर

सुन के नानी की कहानी आज वो रोई बहुत
माँ की मीठी लोरियों ने फिर सुलाया रात भर

आपसी रिश्तों की तल्खी हो गयी नासूर सी 
आँसुओं ने दर्द से रिश्ता निभाया रात भर 

बेरुखी तेरी सताती ही रही दिन भर मुझे
सब्र को तन्हाइयों ने आजमाया रात भर

जो खिला पाया नही इक फूल अपने बाग में
गुल, गुलिस्तां की ग़ज़ल वो गुनगुनाया रात भर

दूर हो कर मुझसे वो भी सो न पायेगा कभी
बस इसी इक बात ने मुझको जगाया रात भर

Monday, February 6, 2012

लदे थे पत्ते
डाली हुई ठूंठ सी
नये की आस

शक्तिमान हो
खिला सकते हो क्या?
एक भी फूल


भौरे की गूँज
आ गया मधुमास
गुनगुनाता


सरसो फूली
पीली हुई हो जैसे
रम्भा के वस्त्र

प्रकृति चक्र
पूर्ण करने को है
व्यग्र मदन




Sunday, February 5, 2012

रुला रुला के जो मार डाले उसी के हाँथों निजाम साहिब
मिलेगा मौका तो हम भी लेंगे शदीद सा इंतकाम साहिब

हुआ नही है कभी जहाँ पर शरीफ़ का एहतिराम साहिब
तो भूल कर भी किया नही है वहाँ पे मैंने कयाम साहिब

सहा जो बेहुर्मती, बुलाते थे प्यार से मुझको महफ़िलों में
हुआ मुझे इल्म तो नही है कोई भी उनका पयाम साहिब

मुगालते में है एक बच्चा करेगा वो सब की रहनुमाई
थमा दिया है शराबियों ने उसी के हाँथों में जाम साहिब

वो जिसकी जुल्फों की भीनी खुशबू कई को पागल बना चुकी है 
उसी कि खातिर किये पड़े हो तुम अपनी नीदें हराम साहिब

पचा हज़ारों करोड़ जिनको लगी नही थी तनिक भी गर्मी
लगी जो इन्साफ की हवा तो हुआ है उनको ज़ुकाम साहिब

नहीं पता था उन्हें कि नादां कि दोस्ती बस जलन है जी की 
सम्हल भी पाते के कब्ल उसके उजड चुके थे इमाम साहिब

बहुत ही खुदगर्ज़ है ज़माना संभल के चलना बचा बचा कर 
तुम्हे पता भी नही चलेगा किया क्यूँ तुमको सलाम साहिब

जो मजहबी चाशनी में इंसानियत डुबो कर सटक रहे हैं
खुदा करे अब चुकायें वो भी कोई तो माकूल दाम साहिब

Thursday, February 2, 2012

कितने झूठे हैं हम ?

रखा था नये संबंधों की सीढ़ी पर 
एक कदम 
उत्साह और उमंग से भरा 
सजने लगे थे ख़्वाब 
सुख दुःख बांटने के 
खुशियाँ बाँट कर 
खुशी से भरे चेहरे देखने के 
दुःख बाँट कर 
अपनी सहनशीलता बढाने के 
महसूस करने लगा था 
अपने आँसू बहते हुए 
किसी कंधे पर 
और कई धड़कने अपने सीने में 
देने लगा था सबल दिलासा 
सिसकियों को 
जीने लगा था 
वसुधैव कुटुम्बकम को 
पर ये क्या हुआ????
खीच ली किसी ने 
पैरों के नीचे से जमीन 
टूट गया मेरा ख़्वाब 
पाया अपने को 
उन्ही अपनों के बीच 
जो यथार्थ हैं 
जिन्हें सिद्ध नही करना है 
कुछ भी 
जो रहे हैं, रहेंगे, सदैव मेरे, 
केवल मेरे 
सुख में, दुःख में 
एक दूसरे में आत्मसात 
विवश हूँ सोचने को
अंतर क्या है 
जानवर और इंसान में 
अपनों को मानते हैं अपना
तो पशु पक्षी भी 
पहचानते हैं, प्यार करते हैं 
फिर हम क्यूँ करते हैं गर्व 
अपनी मनुष्यता पर 
क्या हम पूरे मानव बन पाए हैं?
शायद नही 
अभी भी ज़िंदा है 
जानवर हमारे भीतर 
और हम पाल रहे हैं 
पालते रहेंगे उसे
अपनी संकुचित सोच से 
और करते रहेंगे दंभ 
अपनी तथाकथित मनुष्यता पर 
कितने झूठे हैं हम ?