Wednesday, December 28, 2011

कोंख में कविता


कोंख में कविता


आज पूरी रात
सो नही पायी मैं 
सुखाती रही 
गीले शब्दों को 
गर्म साँसों की आँच पर
आंसुओं ने
कर दिया था विद्रोह
गिरते रहे टप टप टप 
भावों की भट्ठी पर 
बुझाते रहे सुलगते विचारों को
और मैं लिख न सकी
कुछ भी
अपनी सृजन शीलता पर आश्वस्त 
मैं दांत भींचे सहती रही 
अजन्मी कविता की प्रसव-वेदना
नहीं हुआ कोई असर
बादलों से मिले प्रोत्साहन का भी
खूब बढ़ाया मनोबल
पर स्वयं ही बरस गये
और 
हो गए पानी पानी
मुझे विशवास है
जन्म लेगी एक दिन
एक सुन्दर, सलोनी कविता
मेरी कोंख से
और भर जायेगी
मेरी सूनी गोंद

Friday, December 16, 2011

ये क्या हुआ कि आज बिखरने लगा हूँ मैं


ये क्या हुआ कि आज बिखरने लगा हूँ मैं
आहट से खामुशी के भी डरने लगा हूँ मैं


मंजिल की है खबर न किसी राह का पता
अब कैसी मुश्किलों से गुजरने लगा हूँ मैं

रहने लगा है साया मेरा मुझसे दूर दूर 
ऐसा गुनाह कौन सा करने लगा हूँ मैं 

जिसकी हँसी पे था मैं दिलो जान से फ़िदा 
मुस्कान पर भी उसकी, सिहरने लगा हूँ मैं 

आईना मेरा मुझसे चुराने लगा नजर
क्या आख़िरी सफ़र को संवरने लगा हूँ मैं

Saturday, December 3, 2011

लो, सियासत रंग दिखलाने लगी
हर सड़क फिर गाँव को जाने लगी

खामुशी जब आज चिल्लाने लगी
रोशनी से रात घबराने लगी

कैसा बेमौसम का आया मानसून 
बादलों की खेप मडराने लगी

जो गरीबी भूख से बेहाल थी
हाजमे की गोलियाँ खाने लगीं

फिर से उम्मीदों की लालीपाप ले
मुफलिसी भी नाचने गाने लगी

चाह धरती पर चमकने की लिए
बदलियों को धूप बहकाने लगी






Friday, December 2, 2011

नेक इंसान हर इन्सां को भला कहते हैं

नेक इंसान हर इन्सां को भला कहते हैं
जो हैं कमज़र्फ, खुदा को भी बुरा कहते हैं

आज इंसान कई खुद को खुदा कहते हैं
'जाने क्या दौर है क्या लोग हैं क्या कहते हैं'

आज आँखों में शरारत सी अयाँ है उनके
वो मेरी शर्म को भी शोख अदा कहते हैं

दोपहर ढूंढ रही शब की निशानी खुद में
हम इसी चाह की शिद्दत को नशा कहते हैं

बात क्या है कि तेरी याद रुलाती है हमें
लोग क्यूँ 'प्यार हुआ' 'प्यार हुआ' कहते हैं

दम घुटा जाए हो अहसासे गुनह से बोझिल
रूह धिक्कारे तुम्हे, इसको सज़ा कहते हैं

आज़माइश की हदें पार करूँगा हँस कर
दर्द बेहद हो, सुना उसको दवा कहते हैं