Sunday, May 29, 2011


समंदर ने बड़प्पन का गुमां बेजा कराया है 
नदी का लेके सब जल खुद उसे सूखा कराया है

अदब, तहजीब यकसाँ है, अयाँ है, पर सितम देखो 
जरा सी जिद ने इस आँगन का बंटवारा कराया है 

करोगे क्या जुटाकर तुम जखीरे सा ये सरमाया 
इसीने तो घरों में बेवजह झगडा कराया  है 

घनी बस्ती में  सड़कें तंग, दिल होते बड़े, बेशक  
इन्ही ने देश की तहजीब का दीदा कराया है  

कभी हम जीभ अपनी काटते हैं अंध श्रद्धा में 
कभी नन्हे फरिश्तों को डपट रोजा कराया है 

Wednesday, May 25, 2011

फूल टेसू के खिले हैं


जोहती थी बाट जो 
वो राह अब डसने लगी है  
हाय! मेरी ढींठ अंगिया
मुझे ही कसने लगी है
राह हो, अंगिया हो,
लगता है, सभी के मन मिले हैं
समर्पण कैसे नहीं हो 
फूल टेसू के खिले हैं

आम बौराये हुए
मदमत्त महुआ झूमता है
बांह फैलाए हुए
पगलाया भौंरा घूमता है
बने दुल्हन फूल,
मन के मीत कलियों को मिले हैं
नेह का पाकर निमंत्रण
फूल टेसू के खिले हैं

मैं बसन्ती आग में जल रही हूँ
प्रियतम! कहाँ हो
चिढाती अमराइयां,
कैसे हो? कुछ सोचो, जहाँ हो
मैं अकेली रुआंसी, 
कलियों पे भौंरे दिलजले हैं
नियंत्रण कैसे रहेगा
फूल टेसू के खिले हैं

देख आ, 
कोई तुम्हारी याद में यूँ गल रही है  
छाँव भी अठखेलियाँ 
अब धूप के संग कर रही है  
तन तुम्हारा, मन तुम्हारा 
स्वप्न में तो हम मिले हैं 
मन नहीं लगता है प्रियतम 
फूल टेसू के खिले हैं

चाह मन की मन में ही कब तक रखूँ मैं 
ये बता दो 
धैर्य रख लूंगी 
अगर तुम चाह अपनी भी जता दो 
जीत लो जब मन करे 
तुझ पर निछावर सब किले हैं 
आग मन मेंरे, 
दहकते फूल टेसू के खिले हैं 

Saturday, May 21, 2011

आसमां में छेंद करके देख लूं उस पार मैं

आसमां में छेंद करके देख लूं उस पार मैं
इस नियति को क्यों बिना जाने करूँ स्वीकार मैं

रात बाकी है अभी उसको मनाने के लिए
जीत की उम्मीद है तो मान लूं क्यूँ हार मैं


बाप बनकर आज मैं सोचूंगा बेटी की व्यथा      

बन भगीरथ करूँगा गंगा का अब उद्धार मैं 

एक बादल सामने हो, ताप सूरज का घटे 
मेघ दुःख के हैं घिरे तो क्यों रहूँ बेजार मैं

मौत की चादर पे मुझको नींद भी आती नहीं
ज़िंदगी की लाश पे रोया किया हर बार मैं

Monday, May 9, 2011

बस इतना सा समाचार है


घूरे पर बैठा बच्चा
खाने को कुछ भी बीन रहा है
लगता है बिधना से लड़कर
अपना जीवन छीन रहा है
क्या इसको जीवन कहते हैं 
आता मन में यह विचार है
बस इतना सा समाचार है

अपने बालों के झुरमुट से
जाने क्या वो खींच रही है
बूढ़ी दादी गिने झुर्रियाँ
गले मसूढे भींच रही है
जीने की इच्छा तो मृत है
मरने तक ज़िंदगी भार है
बस इतना सा समाचार है

बिटिया की शादी सर पर है
कैसे बेड़ा पार लगेगा
कुछ दहेज़ तो देना होगा
वरना सब बेकार लगेगा
रिश्तेदार कसेंगे ताने
अपनी बिटिया बनी भार है
बस इतना सा समाचार है

अब की बार फसल अच्छी हो
तो घर में कुछ काम कराऊँ
टपक रही झोपडी, इसे फिर
नए प्लास्टिक से ढंकवाऊँ
कई दिनों से खांस रहा हूँ
छोटी बिटिया को बुखार है
बस इतना सा समाचार है
शेष धर तिवारी

Friday, May 6, 2011

है अँधेरा एक दीपक तो जलाना चाहिए

है अँधेरा एक दीपक तो जलाना चाहिए 
जो भटकते हैं उन्हें रस्ता दिखाना चाहिए 

है जिन्हें एहसासे जिम्मेदारी करते हैं जतन 
काहिलों को तो फ़क़त कोई बहाना चाहिए 

सोचिये मंज़र कि जब पानी नहीं होगा नसीब
पीढ़ियों के वास्ते इसको बचाना चाहिए 

जो कहे, इक बूँद पानी की नहीं होती अहम
ऐसे नादां को समंदर से मिलाना चाहिए  

आज भी गर ठान लो दुनिया सराहेगी तुम्हे 
रास्ता तुमने दिखाया, फिर दिखाना चाहिए

जल नहीं जीवन बहाती हैं ये ढीली टोंटियाँ
खुद इन्हें कैसे सुधारें हम, ये आना चाहिए

जल न बन जाए कहीं कारण महासंग्राम का
कल को इस संभावना से तो बचाना चाहिए 

Wednesday, May 4, 2011

आवाज़ दो

भले एक पल के लिए, मान कर दो   
है मौका हसीं, आओ एहसान कर दो 

अकेले कटी ज़िंदगी, जो थी मुश्किल
मेरी मौत को आ कर आसान कर दो

मेरे दिल में आबाद हैं तेरी यादें
भले मेरी दुनिया को सुनसान कर दो

अकेले जिया बेझिझक सब सहा है
अकेले मरूं न ये सामान कर दो

तू चाहे मुझे, उम्र भर था तरसता
मरूं खुश जो चाहत का पल दान कर दो 

Sunday, May 1, 2011

चाँद का पहरा


अगर रातों पे हमदम चाँद का पहरा नहीं होता 
हमारा ज़ख्मे दिल भी इस क़दर गहरा नहीं होता


नहीं मिलतीं अगर सागर से बलखाती हुई नदियाँ 
समंदर अब तलक अपनी जगह ठहरा नहीं होता 


भले धोखा सही लेकिन झलक पानी की दिखती है 
कोई राही वगरना दाखिले सहरा नहीं होता 


नहीं दिखता मगर बेटे को को मां पहचान लेती है 
नज़र में उसकी उस जैसा कोई चेहरा नहीं होता 


सदाएं शोर सी गर गूंजती होतीं नहीं हर सू 
खुदाया! जानता हूँ, तू कभी बहरा नहीं होता