Wednesday, March 30, 2011

मरो तो सही

कभी किसी कि हंसी का सबब बनो तो सही
उसे भली जो लगे बात वो कहो तो सही

हमारे गाँव के रस्ते शहर की ओर चले
शहर के लोगों कभी रुख इधर करो तो सही

अदब का नाम नहीं लूँ यही मुनासिब है
ग़ज़ल में दम तो है दुष्यंत को पढ़ो तो सही

हमें नहीं है पता काफिया रदीफ बहर
हमारे दिल की ये आवाज़ है सुनो तो सही

चलेगी सांस, तेरा ज़िक्र तक नहीं होगा
भरी जवानी में दुष्यंत सा मरो तो सही 

ज़िंदगी को रुलाने से क्या फायदा

मौत से मुह छिपाने से क्या फायदा
ज़िंदगी को रुलाने से क्या फायदा

छोड़कर जो अकेला तुझे चल दिया
उसका मातम मनाने से क्या फायदा

जिसके अश्कों का तुझपर असर ही न था
उस पे आँसू बहाने से क्या फायदा

एक भी बात उसकी न भाई तुम्हे
अब कसीदे सुनाने से क्या फायदा

उम्र भर तो नहीं ली किसी ने खबर
आज मजमा लगाने से क्या फायदा

तेरी महफ़िल से तौबा की औ चल दिया
अब ग़ज़ल गुनगुनाने से क्या फायदा

जिसको साहिल की कोई तमन्ना न हो
उसकी कश्ती डुबाने से क्या फायदा

जो कभी दूर तुमसे हुआ ही न हो
आज उसको बुलाने से क्या फायदा

ज़िंदगी जब इबारत नहीं बन सकी
उसको उन्वां बनाने से क्या फायदा

जब अदा दिल दुखाने की आती न हो
फिर मुहब्बत जताने से क्या फायदा

जो फसादात में ही मुलव्विस रहा
उसकी अज़मत बढाने से क्या फायदा

कल तलाक जिस्म पर वार होते रहे
आज मरहम लगाने से क्या फायदा

जब की गुलशन से सब खार गायब हुए
गुल पे पहरे बिठाने से क्या फायदा

जह्र का जिस जुबां को असर मिल गया
अब उसे मुह लगाने से क्या फायदा

जो तुम्हारे रहे हैं रहेंगे सदा
'शेष' को आजमाने से क्या फायदा 

Wednesday, March 23, 2011

बुजिर्गों का साया

खुशी मुझको मिली तुमसे किया वादा निभाया है
तुम्हारी बेवफाई को कलेजे से लगाया है

जिसे छोड़ा है भूखे पेट मरने के लिए तुमने
उसी ने पेट अपना काटकर तुमको खिलाया है

मुनव्वर कर तुम्हे खुद को अंधेरों से किया माइल
उचाई पर पहुच जिसको निगाहों से गिराया है

जिसे मेरा समझकर ले गए दिल था तुम्हारा ही
दुखी होना नहीं तुमने नहीं कुछ भी चुराया है


तुम्हारी बेवफाई ने नुमाया कर दिया मुझको 
हुए बदनाम तो क्या नाम तो फिर भी कमाया है 


हमारी आँख से निकले तुम्हारी आँख के आँसू
तुम्हारी बेबसी ने आज मुझको यूँ रुलाया है

कहाँ महसूस होता है कि तल्खी धूप में कितनी
बुजुर्गों का हमारे सर पे जब तक खास साया है 

Tuesday, March 15, 2011

ठेंगे से

आज जम कर पी लिया है यार, क्या हो जाएगा 
गर नहीं अच्छा,  तो ठेंगे से,  बुरा हो जाएगा 


फायदा होगा, नियम से हर शनीचर जो पिया  
रोज पव्वा पी लिया तो पीलिया हो जायेगा


पी लिया तो जी लिया हँस कर सभी के साथ में 
है मुसीबत, न पिए, सब से जुदा हो जाएगा 

भांग की गोली गटक कर ठंडई भी पी लिया 


गर शुरू हंसना हुआ तो सिलसिला हो जाएगा 

जिन बियर थोड़ी सगुन करने को हमने पी लिया  
आज व्हिस्की भी मिले तो तर गला हो जाएगा 


खून तो सारा समंदर ने झपट कर पी लिया 
अब हंसी आयी अगर तो दिल खफा हो जाएगा 



नालियों में ही पियक्कड क्यों गिरा, जब पी लिया  
"शेष" गर ये राज खुल जाए तो क्या हो जाएगा 

Saturday, March 12, 2011

कुदरत का कहर

कुदरत पर हम जब तक अत्याचार करेंगे 
अपने को ही हम यूँ ही लाचार करेंगे 

कुदरत का ये कहर नहीं आता है यूँ ही 
क्या अब भी हम कुदरत से ब्याभिचार करेंगे 

जीना है तो थोडा थोडा मरना सीखें 
अपने कुछ सुख कम सारे परिवार करेंगे 

मूलभूत आवश्यकताएं जो जीवन की 
अब बस उनको ही हम सब स्वीकार करेंगे 

बंद करें अब खेल खेलना कुदरत से 
सार्वभौम सत्ता उसकी स्वीकार करेंगे 

Sunday, March 6, 2011

होली ..... क्रमशः


होली ..... क्रमशः 

कोई हमको ताऊ कहता कोई अंकल चाचा, हम क्या बूढ़े हैं 
जांचे परखे बिन होता क्यूँ ऐसा अत्याचार जोगीरा स र र र

गीली गीली रंग सनी जब निकले गोरी घर से अपने, होरी को 
मन पर दबी हुई इच्छाओं का होता अधिकार जोगीरा स र र र 

देवर तकता भौजाई की गीली सारी से चिपकी गीली अंगिया 
सोचे मन ही मन कब होगा उसका बेड़ा पार जोगीरा स र र र 

अब की तो मंहगाई ने तोड़ी है कमर सभी की, चलो करें वादा 
अगली बार बनेगी अपनी बहुमत की सरकार जोगीरा स र र र 

कुछ भी कर लो, असर नहीं होगा सरदार, किसी पर, जनता समझ गयी 
मैडम को तो अभी तलक है कलमाडी से प्यार जोगीरा स र र र 



अबकी दारू खूब चलेगी जब होगा अगला चुनाव 

Saturday, March 5, 2011

होली

लो आयी फिर होली ले कर रंगों की बौछार जोगीरा स र र र 
बुधुवा भी नाचेगा खा कर रोटी और अचार जोगीरा स र र र 

उसका छोटा बेटा मांगे पिचकारी का पैसा लेकिन दे कैसे 
उसकी महतारी को भी खुश करना है इस बार जोगीरा स र र र

बुढऊ दद्दा को आती है याद सभी पिछली होली, अपनी उसकी 
कैसे हो जाते थे उनके कपडे तारमतार जोगीरा स र र र

जीजाजी ऐंठे बैठे हैं साली से कुछ मनमुटाव सा लगता है 
मन की मन में रह जायेगी लगता है इस बार जोगीरा स र र र 

हम तो खुश है छुट्टी होगी तीन दिनन की जम के भंग छनेगी फिर 
ऐसा मौका मिल जाए तो कैसा सोच बिचार जोगीरा स र र र


गीली गीली रंग सनी जब निकले गोरी घर से अपने, होरी को 
मन पर दबी हुई इच्छाओं का होता अधिकार जोगीरा स र र र 

देवर तकता भौजाई की गीली सारी से चिपकी गीली अंगिया 
सोचे मन ही मन कब होगा उसका बेड़ा पार जोगीरा स र र र 

कोई हमको ताऊ कहता कोई अंकल चाचा, हम क्या बूढ़े हैं 
जांचे परखे बिन हम पर ये कैसा अत्याचार जोगीरा स र र र