Tuesday, November 30, 2010

हिंदी

बच्चन की मधुशाला हिंदी
मीठे रस का प्याला हिंदी
तुलसे सूर कबीर जायसी
दिनकर पन्त निराला हिंदी
रिश्तों की परिभाषा हिंदी
प्रीत प्यार की भाषा हिंदी
जींस टाप को ना ना ना ना  
मेरी लहंगा चोली हिंदी 
हंसी ठिठोली भाभी माँ की 
होली और दिवाली हिंदी
वैलेंटाइन डे को ना ना 
रक्षा बंधन कुमकुम हिंदी
इंग्लिश एनी हाउ वनली 
भाषा की सार्थकता हिंदी
आओ हम अपनाएँ हिंदी
आगे और बढायें हिंदी 
 

Monday, November 29, 2010

आँसू बहाते रहे

कब्र पर बाद में भी वो आते रहे
दफ्न करके भी मुझको जलाते रहे

सांप को हम संपेरा बनाते रहे
बाद में खुद को उससे बचाते रहे

हम न समझे थे उनका इशारा, तभी
देख मुझको वो आँचल गिराते रहे

गम का मारा हँसा रोते रोते, जिसे
कह के पागल हमेशा बुलाते रहे

कोई साथी हमें मिल न जाए नया
मेरी यादों में चक्कर लगाते रहे

कह के मोती या दरिया मेरे अश्कों को
लोग मखौल मेरा उड़ाते रहे

बाद दफनाने के कौन उम्मीद थी
कब्र को देख आँसू बहाते रहे

मेरे दामन के कांटे न घायल करें
दूर फूलों से हम खुद ही जाते रहे

वो ख़ुशी से चला जाय, ये सोचकर
अपनी नाराजगी हम छुपाते रहे

संगदिल एक इंसान हमको मिला
मान भगवान उसको रिझाते रहे

हो गया "शेष" खारा समंदर जभी
बैठ साहिल पे आँसू बहाते रहे

Saturday, November 27, 2010

अलख

आप यूँ ही सदा मुस्कराते रहें 
अपनी अर्थी को हंस कर सजाते रहें

क्यूँ भरोसा करें हम किसी और पर
खुद हमी अपना मातम मनाते रहें

आएगी जब मुसीबत तो सोचेंगे हम
क्यूँ अभी से हम आंसू बहाते रहें

हो सकेंगे न शामिल जनाज़े में जो
उनकी अर्थी को कांधा लगाते रहें

बद्दुवाओं से कोई भी मरता नहीं
कर दुवा क्यूँ न एहसां जताते रहें 

जो किनारा किये जिक्र से भी मेरे
गीत उनके ही हम गुनगुनाते रहें

जिनकी ऑंखें हुईं नम मेरे हाल पे 
है दुवा वो सदा खिलखिलाते रहें

मेरी शालीनता को न समझें कमी 
ये हकीकत उन्हें हम बताते रहें 

जी करेगा भरेगा वही है ये तय 
ये अलख बारहा हम जगाते रहें 

Friday, November 26, 2010

मैं करता हूँ प्यार

मैं करता हूँ प्यार जिसे है स्वयं प्यार की मूरत
देख देख बस जीता जाऊं है ऐसी वो सूरत

अपने कोमल स्पर्श मात्र से दुःख मेरा हर लेती
निश्छल उसकी हँसी मुझे दुनियाँ का सब सुख देती

पैरों के नाखून दिखें ज्यूँ घाटी नीचे झील
पावों के तलवे यूँ जैसे सूरज लीना लील

पंजे जैसे हिमखंडों से नीचे उतरे नीर
पाँव सुघड़ उत्साह भरे चलने को रहें अधीर

उसकी गोंदी बैठ विधाता रचते सृष्टि विधान
अंग लगे जो मृत शरीर आ जाए उसमे जान

ग्रीवा जैसे संगमरमरी मूरत बिन श्रृंगार
होठ गुलाबी व्यक्त करें इक दूजे का आभार

गालों की लालिमा चमकती ज्यों उषा की लाली
सुघर नासिका करती जैसे बगिया की रखवाली

भाल चमकता स्नेह सिक्त ज्यों मोती का कंगूरा
केश फहरते ऐसे ज्यों बादल खा जाए धतूरा

ऐसी ईश्वर की रचना से करता हूँ मैं प्यार
मेरे जीवन पर है बस इस रचना का अधिकार

Tuesday, November 23, 2010

आँसू

काश उसके आँसू कोई पोंछता
आँसुओं से अपने घायल हो गया
देर तक रोता रहा फिर हँस पड़ा
लगता है वो सख्स पागल हो गया


एक बूँद आँसू को कह दिया मोती, और
आँसुओं की धार को दरिया की रवानी
आँख से जिनके गिरे उनसे तो पूछिए
आँसुओं की होती क्या इतनी सी कहानी

Monday, November 22, 2010

देश के नेता

मच्छर काटता है जब कहाँ कोई भी सोता है 
खुजाता है उसे फिर बाद में भी दर्द होता है

हम उसको मार भी सकते नहीं ये अपनी मजबूरी
रगों में दौड़ता उसका लहू अपना ही होता है

हमें तो चूसते ही जा रहें हैं देश के नेता
सितम उनका हमें क्यूँ बारहा मंजूर होता है

हवा करती है सरगोशी बदन ये काँप जाता है
हमें जब अपना ही बेचारापन महसूस होता है

न जाने कब उठेंगे और अपने को बचायेंगे
सितम हमको न जाने कैसे ये मंजूर होता है

अगर अब भी न चेते देश को ये बेंच खायेगे
इन्हें अपने लिए स्विस बैंक ही मंजूर होता होता है

Sunday, November 21, 2010

हवा करती है सरगोशी बदन ये काँप जाता है 4

झुकी नज़रों से उनका मुस्कराना जुल्म ढाता है
हवा करती है सरगोशी बदन ये काँप जाता है

हँसीना जो मिली थी आज मुझको एक अनजानी
उसी की एक चितवन के लिए दिल डोल जाता है

छिपाए जा रही थी चाँद सा मुखड़ा उरोजों में
नवेली व्याहता का ज्यूँ कोई घूंघट उठाता है

खुदा भी है बड़ा माहिर, बना दीं सूरतें ऐसी
जिन्हें गर देख लो इक बार तो ईमान जाता है

चलो अच्छा हुआ, देखा उसे मैंने फकीरी में
नहीं तो इश्क, पहचाने बिना फाँका कराता है

Saturday, November 20, 2010

फ़र्ज़ पाकीज़ा

लिए जाँ को हथेली में जवाँ दिल मुस्कराता है
मुझे करगिल शहीदों का फ़साना याद आता है

कभी जब देखता हूँ मैं ज़नाज़ा देश वीरों का
हवा करती है सरगोशी बदन ये काँप जाता है

खिलाया होगा इनको भी किसी माँ बाप ने गोंदी
उन्हें किस हाल में रोता बिलखता छोड़ जाता है

निभाने फ़र्ज़ पाकीज़ा वो अपने देश की खातिर 
सुरीली लोरियाँ माँ की दीवाना भूल जाता है 

उन्होंने भी करी होंगी किसी के प्यार की पूजा 
बिना जिसके जिए कोई कभी सोचा न जाता है 

शहीदों की चिताएँ देख बूढ़े भी उबलते है
जवानी लौट आती है बुढापा भाग जाता है 

"हवा करती है सरगोशी बदन ये कांप जाता है" 1

तुम्हारे आने की खुशबू को दिल महसूस करता है  
हवा करती है सरगोशी बदन ये कांप जाता है

निगाहें हैं लगी हर सू उसी इक राह की जानिब 
कि जिस जानिब से उठके तेरा जाना याद आता है 

बहुत दिन हो गए अब तो हमारे पास आ जाओ 
सुना है तुमको भी गुजरा ज़माना याद आता है  

मिरे इस घर में अब भी मैं तुम्हारी चाप सुनता हूँ 
कि जैसे घर का हर कोना मुझे छुपके बुलाता है 

मुझे देना पड़ेगा कब तलक ये इम्तेहाँ बतला 
सताने से सुना है सख्त जाँ भी टूट जाता है 

Monday, November 15, 2010

दोस्ती

कोई भी दोस्त गर नाराज रहे, मुझसे बर्दाश्त क्यूँ नहीं होता
दोस्ती तो हसीं नियामत है, उसको आभास क्यूँ नहीं होता

आज इस स्वार्थ भरी दुनियाँ में, मैं जिंदा हूँ दोस्तों के लिए
दोस्त गर होते नहीं साथ मेरे, मैं दुनियाँ में यूँ नहीं होता

भूल पाता नहीं मैं वो दिन जब अपनों ने साथ था छोड़ा
दोस्तों ने संभाला न होता, जीवन ये बाखुशबू नहीं होता

मेरे बच्चे अनाथ हो जाते, मेरी बीबी भी हो जाती बेवा
दोस्त गर ऐन वक़्त न आते, घर मेरा पुरसुकूं नहीं होता

आज बस इतना ही कहता हूँ, कि दोस्ती सच्ची इबादत है
दोस्तों के बिना इबादत क्या, मेरे हाथों वजू नहीं होता

Sunday, November 14, 2010

गले लगाओगे


दूर रहके ही मुस्कराओगे
या करीब मेरे तुम आओगे 

फिक्र अपनी नहीं तुम्हारी है
कैसे तुम जिंदगी बिताओगे

जागती आँखों में सोये कोई    
नीद में मुझको ही सुलाओगे 

मुझको भुलाना है नहीं आसाँ
कैसे इस बात को भुलाओगे 

मिरी पुतली जो पलट जायेगी
बारहा मुझको तुम बुलाओगे

करोगे अपने से धोखा कबतक 
हकीकत कब तक यूँ छुपाओगे 

आजाओ ,  तुम जीते मैं हारा 
अब तो खुश हो गले लगाओगे 

Saturday, November 13, 2010

उम्मीद

जैसा भी हो नसीब मगर दिन तो कटेगा
मुफ्लिस तो पेट के लिये दिन- रात खटेगा

पाओं में आबले हैं , बड़ी दूर मनाज़िल
पुरख़ार रास्ते है, चलो, दर्द बँटेगा

वाइज़ का मोज़िज़ा मै बहुत देख चुका हूँ
अब अपनी रोशनी से ये अन्धेर घटेगा

मुझको यकीं है वो जो अभी तक है तहाजुल
डट जाउँगा अगर तो मेरे साथ डटेगा

सब दे दिया है इसलिये बनना न खरीदार
मौला भी ताज़िरों को कयामत पे जटेगा

सबको गले लगाओ मगर सोच समझ कर
काँटो से दिल लगाओ तो दामन तो फटेगा

दुश्मन कोई नहीं है अगर जान लिया है
इल्ज़ामे- दुश्मनी भी तिरे सर से हटेगा

Thursday, November 11, 2010

कौन

हर इक सूरत में तेरी सूरत बसा देता है कौन
गौर से देखूँ तो फिर तुमको छुपा देता है कौन

जिस जहाँ में अपने भी रहते नहीं अपने, बता
उस जहाँ में गैरों को अपना बना देता है कौन

वो तो अपने प्यार की खातिर लिपटता दीप से
इतनी बेरहमी से पांखी को जला देता है कौन

इक सुबह होती है मिलनी हर सुनहरी शाम को
रात को इस बीच में बेवज़ह ला देता है कौन

लादकर कंधे पे बचपन में ही जिम्मेदारियाँ
बच्चों को बे उम्र ही बूढा बना देता है कौन

हम समझते हैं कि हम तो कर रहे हैं तय सफ़र
इस जमी को रोज कुछ आगे बढ़ा देता है कौन

जिंदगी भर अपने को धो मांज चमकाते हैं हम
एक पल में फिर हमें मिट्टी बना देता है कौन

Wednesday, November 10, 2010

सब्र तो करो

यूँ रोते नही शामो –सहर , सब्र तो करो 
कहती है अभी राहगुज़र सब्र तो करो 

दुनिया जो मुक़ाबिल है कहो पूजने लगे
ऐ मेरे जवाँ ज़ख्मे-जिगर सब्र तो करो 

धरती में निहाँ सोज़ कोई अब्र बन गया 
जब दिल का धुआँ जाये ठहर सब्र तो करो 

छालों के कई दाग दिये खैरख्वाह ने 
चमकेंगे यही दाग़ मगर सब्र तो करो 

जो धूप बिखेरे है वही बख़्श दे कभी 
ज़ुल्फ़ों की घनी छाँव बशर सब्र तो करो 

आती है उसे शर्म मिरे साथ आज, पर 
कल खुद पे लजायेगी नज़र सब्र तो करो 

इक रोज़ मुहब्बत का उसे भी लगेगा रोग 
जायेंगे तिरे भाग सँवर सब्र तो करो 

इस वज़्ह तुम्हें ज़ख्म दिये जा रहे है, वो 
मरहम भी लगायेंगे, मगर सब्र तो करो 

मंज़िल के लिये शहर में घूमो न दरबदर
आयेगी वो ज़ीने से उतर सब्र तो करो 

आयी न वफ़ा रास हबीबों को “शेष” की
हमराह हैं खुर्शीदो-क़मर सब्र तो करो 

Monday, November 8, 2010

नोक झोक

अजी सुनती हो?
नहीं ... मैं तो जनम कि बहरी हूँ
मैंने ऐसा कब कहा?
तो अब कह लो, पूरी करलो साध. कोई भी हसरत अधूरी क्यों रहे?
अरी भाग्यवान!!
हे!! सुनो एक बात.... आइन्दा मुझे कभी भाग्यवान तो कहना मत. फूट गए नसीब मेरे तुमसे शादी करके और कहते हो भाग्यवान... हुह....
एक कप चाय मिलेगी
एक कप क्यों लोटा भर मिलेगी और सुनो .... किसको सुना रहे हो? मैं क्या चाय बना के नहीं देती?
अरे यार कभी तो सीधे मुह बात ...
बस .... आगे मत बोलना. नहीं आता मुझे सीधे मुह बात करना.... मेरा तो मुह ही टेढ़ा है यही कहना चाहते हो न?
हे भगवान्
हाँ ... माँग लो भगवान् जी से एक कप चाय. मैं चली नहाने
और सुनो मुझे शम्पू करना है.... देर लगेगी..... बच्चों को स्कूल से ले आना .... मेरे अकेले के नहीं हैं .....
अरे ये सब क्या बोलती हो?
क्यों झूट बोल दिया क्या? मैं क्या दहेज़ में ले के आयी थी इनको?
अरे मैं कहाँ कुछ बोल रहा हूँ?
अरे मेरे भोले बाबा, तुम कहाँ बोलते हो? मैं तो चुप थी .... बोलना किसने शुरू किया? बताओ ...
अरे मैंने तो एक कप चाय मांगी थी
चाय मांगी थी या मुझे बहरी कहा था? क्या मतलब था तुम्हारा? "अजी सुनती हो ..... ? " का क्या मतलब, बताओगे?
अरे श्रीमती जी... कभी तो मीठे से बोल लिया करो
अच्छा.... मीठा नहीं बोली मैं कभी भी? तो ये दो दो नमूने क्या पडोसी के हैं.  देख लिया है मीठा बोल के ....
बस अब और मीठा बोलने कि हिम्मत नहीं है.
भूल रही हो मैडम .......
क्या भूल रही हूँ.....
अरे मुझे बात तो पूरी करने दो. मैं कह रहा था कि पति हूँ तुम्हारा...
अच्छा ..... मुझे नहीं पता था. सूचना के लिए धन्यवाद
अरे नहीं चाहिए मुझे तुम्हारी चाय...  बक बक बंद करो
अरे वाह!! तुम्हे तो बोलना भी आता है? बहुत अच्छे.... पी के जाओ.... बाद में नहा लूँगी
गज़ब हो तुम भी.... पहले तो बिना बात लडती हो फिर बोलती हो पी के जाओ
तो क्या करूँ जी? तुम लड़ने का मौका कहाँ देते हो? मन करे तो क्या पड़ोस में जाऊँ लड़ने?
बनाओ जल्दी नहीं तो बच्चों को लाने में देर हो जायेगी
अभी लो जी, बस एक मिनट में.

बेटी

मैं नन्ही सी सृष्टि बिंदु जिसके माथे लग जाऊंगी
उसकी गरिमा को अपनी गरिमा से जोड़ बढाऊंगी

मेरा उद्गम सत्य सनातन सर्व-सृष्टि-जन-हितकारी
साधन बनती हूँ मैं लेकिन महिमा है उसकी सारी

मैं माँ हूँ, मैं बेटी हूँ, मैं पत्नी, फूफी, ताई हूँ
जो मेरे अपने हैं उनके भाग्य कि मैं परछाई हूँ

फिर भी हेय दृष्टि से मुझको क्यों देखें मेरे अपने
जिस मंदिर भी मत्था टेकूं वहां पुजारी सब अपने

पर मेरे माथे को मंदिर में ही फोड़ा जाता है
माँ के हांथो ही बेटी का खून निचोड़ा जाता है

हर मंदिर का धर्म अगर हत्या करना हो जाएगा
मुस्तकबिल कैसा होगा दुनियाँ को कौन चलाएगा

Sunday, November 7, 2010

अवहेला

करती है तैयार तुम्हे दिन भर कि कठिन यात्रा को
क्यूँ उसके श्रींगार का तुमने यूँ ही तिरस्कार कर दिया
क्या उषा अब उद्दीपन का साधन बन रह जायेगी
क्यूँ संध्या के माथे में इतना सारा सिन्दूर भर दिया

तेरी अवहेला को अब वो और नहीं सह पाएगी
माँग सजाने को दूजे की साधन नहीं जुटाएगी
जिस दिन उसने आँख मूद ली तू अंधा हो जाएगा
फिर संध्या का इंतज़ार कितना लम्बा हो जाएगा

Wednesday, November 3, 2010

ऐसी हो अब की दीवाली

अँधेरा मिटाने को एक दीप मेरा भी
हौसला बढेगा गर साथ मिले तेरा भी 

ढूंढें हर उस घर को जिसमे अँधेरा हो 
रख दें एक दीप वहाँ तेरा या मेरा हो 

रीती आँखों में खुशियाँ थोड़ी भर दें
मुस्काये हर चेहरा ऐसा कुछ कर दें

हर घर में एक राम राजा बन जाए
हर घर अयोध्या हो खुशियाँ मनाये

राम करे ऐसी हो अब की दीवाली
जितना भी बाँटें पर जेब हो न खाली 






Tuesday, November 2, 2010

दीवाली

हे लक्ष्मी माँ अबकी बारी उनकी भी सुध लो
जिनके घर न दीपक बाती गोंद उन्हें तुम लो
जिनके घर में जलती न हो चूल्हे में भी आग
ऐसा कुछ कर दो माँ अबकी जागें उनके भाग
बच्चा उनके घर में कोई भूखा न सो जाय
पूड़ी खीर भले न खावें पर चेहरा खिल जाय
माँ कि हँसी न हो बनावटी झूठा लगे न बाप
स्वागत करने उठा कोई भी हाथ न जाए काप
मुफलिस के तन को दे कपड़ा मन में दीप जला
होगी मेरी यही दिवाली सब का होए भला
अखलाकन न हँसे कोई मन रहे न कोई उदास
इस दीवाली मेरी तुझसे बस इतनी सी आस

बिरही

मुझे सताए सजना, जाए प्रीत निगोड़ी जाग
छू के मुझको लगा गए क्यूँ तन में मेरो आग

तेरो अंग लगूँ तो लागे हर दिन मोको फाग 
छू के मुझको लगा गए क्यूँ तन में मेरो आग

चले गए परदेस सजनवा, फूट्यो  मेरो भाग
छू के मुझको लगा गए क्यूँ तन में मेरो आग

चाँद सुलगता लागे मोहे, फूल दहकती आग
छू के मुझको लगा गए क्यूँ तन में मेरो आग

हार गले का, पाँव पैजनी लिपटें जैसे नाग 
छू के मुझको लगा गए क्यूँ तन में मेरो आग

बिन तेरे माथे कि बिंदिया, लगे जले का दाग
छू के मुझको लगा गए क्यूँ तन में मेरो आग

चाहे कितना सज लूँ साजन, सूनी रहती माँग
छू के मुझको लगा गए क्यूँ तन में मेरो आग 

Monday, November 1, 2010

मियाँ जमीर

बहुत दिनों से सोच रहा था
की मैं भी फेसबुक पे जवान हो जाऊँ.
बदल दूँ प्रोफाइल की फोटो
और हटा दूँ जन्म तिथि से साल.
बस इतना ही तो करना होता है.
फिर लिखूं कुछ चटपटी शायरी,
उम्र के हिसाब से
और बना लूँ बहुत सी कन्याओं को दोस्त.
पर क्या करूँ?
मेरे अन्दर एक सख्स ने
अपना स्थाई निवास बना रखा है.
ये हैं मियाँ जमीर.
जनाब कुछ करने ही नहीं देते.
जब देखो उठ के खड़े हो जाते हैं.
बखेड़ा खड़ा कर देते हैं साहब.
सोने नहीं देते
जब तक मान न ली जाय
इनकी बात .
सो मैंने इनके डर से ही
इस पुनीत इच्छा को दबाया
और बने हैं अट्ठावन के.
अब जो भी हो
कम से कम मियाँ जमीर तो खुश हैं.

फिक्र

 क्या वजह है कि उनसे दूर न रहा जाए
जिनसे दो बोल हलावत से न कहा जाए 

हो गया दूर मैं तुम्हारी जिन्दगी से ही 
जिसको आना हो वो पास तेरे आ जाए

रखना दूर जरा अपने को तुम अपने से 
न हो ऐसा कि आने वाला भी चला जाए

तन्हाई तुम्हारी करती है मुझे खौफज़दा
सोचता हूँ कि क्यूँ न साथ ही रहा जाए 

मुझे अपनी नहीं परवाह, पर तुम्हारी है
सब्र तेरा कहीं तुमको ही न ठुकरा जाए

हम तुम्हे जानते न होते तो चुप हो जाते
कहीं गम तेरा मेरी मुश्किल न बढ़ा जाए

याद करता हूँ जब गुजरे हुए जमाने को
दिल मेरा कहता है अब दूरी को भरा जाए 

चलो हम फैसला आज एक कर ही लेते हैं 
रहें. गुस्से. में  चुप पर साथ ही रहा जाए